Kshitij ke us paar

वह आँखे जीनमे दर्द बसा है कही
गीरकर फ़ीर से उठने का सपना दबा है वही
वह काले बीज सपने अंकुरीत होते है जहा
त्न्हाई की जहराई मे प्यार का नीर छलकता है जहा
एक पर्षन के जवाब की तलाश मे नज़र आते है…

अक्सर आशा से बाते करता है वह
अगर वह चल सकता तो क्या यह होता
अगर वह दौड़ सकता तो कोई कुछ कहता
उम्मीद् के मील पथर पर मौत् के फ़ास्ले
क्या कुछ नही बताते है मुझे
पल-पल स्वपन-क्स्तूरी के पीछे उड़ना
बहुत कुछ का अहसास कराते है मुझे….

डुब्ती लफ़्ज़ो मे जब ध्ड़कन साथ छोड़ने लगे
और वीलुपत की प्यास बढ़ने लगे
तब इन आखो को बंद कर देखना
शायद नज़र आ जाए शीतीज के उस पार….

2 responses to “Kshitij ke us paar

  1. so true lines! anybody can relate him\herself with it touching..

  2. thanks so much!! written this for someone..now he is not alive …

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